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टमाटर की खेती

गेहूं की कटाई के तुरंत बाद किसान इन फसलों की करें बुवाई, मिलेगा शानदार मुनाफा

गेहूं की कटाई के तुरंत बाद किसान इन फसलों की करें बुवाई, मिलेगा शानदार मुनाफा

भारत एक कृषि प्रधान देश है। 1947 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कृषि क्षेत्र की भागीदारी 60% प्रतिशत थी, जो 2022-23 में घटकर 15% प्रतिशत ही रह गई है। नाबार्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 10.07 करोड़ परिवार खेती पर आश्रित हैं। 

यह संख्या भारत के कुल परिवारों का 48% प्रतिशत है। भारतीय कृषि की विडंबना यह है, कि आज भी किसान अपनी फसलों की सिंचाई के लिए बारिश के पानी पर निर्भर रहते हैं। 

ऐसे में गर्मियों के मौसम में भी किसानों को अपनी फसलों की सिंचाई के लिए गंभीर चुनौतियों से जूझना पड़ता है।

अप्रैल माह में गेंहू सहित अन्य रबी फसलों की कटाई संपन्न हो जाती है  

दरअसल, किसान अप्रैल में गेहूं और रबी फसलों की कटाई शुरू करते हैं। कटाई खत्म होते-होते गर्मी अपनी चरम सीमा पर पहुंच जाती है। लू के चलते खेतों में धूल उड़ने लग जाती है। 

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इसके साथ ही जलस्तर भी काफी हद तक नीचे चला जाता है, जिससे पानी की किल्लत हो जाती है। ऐसे में सिंचाई के अभाव की वजह से बहुत सारे किसान अप्रैल से जून के बीच कोई खेती नहीं करते हैं। किसानों की उन्नति और सकल उत्पादन पर भी काफी प्रभाव पड़ता है। 

सब्जियों की खेती में काफी मुनाफा होता है 

अगर हम कृषि विशेषज्ञों के दिशा-निर्देशन की बात करें, तो गर्मियों का मौसम जायद की फसलों के लिए काफी प्रतिकूल माना जाता है। ऐसे में किसान मोटे अनाज सांवा, कोदो, रागी, पटुवा के साथ ही सब्जियों में बैंगन, शिमला मिर्च, तोरई कद्दू, लौकी, तरबूज, खीरा और खरबूजा की खेती कर सकते हैं। 

मूंग और उड़द की दलहनी फसलों की खेती में भी पानी की कम खपत और आवश्यकता होती है। किसान इन फसलों की खेती 30 से 40 सेंटीमीटर वर्षा वाले इलाकों में भी कर सकते हैं। इन फसलों की बाजार में मांग भी काफी अधिक होती है। 

गर्मियों के दिनों इन फसलों की खेती की जाती है  

कृषि विशेषज्ञों का कहना है, कि गर्मियों के मौसम में मिलेट्स के साथ ही सब्जियों की खेती करके किसान कम लागत में अधिक मुनाफा उठा सकते हैं। इन फसलों की सिंचाई के लिए पानी की कम आवश्यकता पड़ती है। 

बतादें, कि गर्मियों का मौसम इन फसलों के लिए अत्यंत अनुकूल माना जाता है। किसान सब्जियों में करेला और टमाटर की खेती भी कर सकते हैं। इसमें भी सिंचाई के लिए कम पानी की आवश्यकता पड़ेगी। 

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बाजार में इन सब्जियों की मांग भी ज्यादा रहती है, जिससे वह अच्छा मुनाफा भी कमा सकते हैं। 

इन क्षेत्रों के जलस्तर में भारी गिरावट दर्ज की गई है  

रायबरेली जनपद में किसान बड़ी संख्या में सब्जियों की खेती पर ही निर्भर हैं। उनका कहना है, कि रायबरेली के दक्षिणी और पूर्वी क्षेत्र में जलस्तर बहुत कम है। वहां के किसान सब्जियों की खेती यानी की बागवानी की खेती पर ही आश्रित रहते हैं। 

विशेष बात यह है, कि धान- गेहूं की तुलना में सब्जियों को बहुत ही कम सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। ऐसे में पानी की किल्लत से भी किसानों को जूझना नहीं पड़ेगा।

टमाटर की फसल में एकीकृत कीट प्रबंधन

टमाटर की फसल में एकीकृत कीट प्रबंधन

टमाटर उत्पादन किसानों के लिए बहुत ही लाभदायक व्यवसाय है। जहां जलवायु की विविधता के कारण विभिन्न प्रकार की सब्जियों की खेती सफलतापूर्वक की जा रही है। सब्जियों पर कीटों का प्रकोप अधिक होता है। इससे पैदावार में कमी आती है और किसानों को नाशीकीटों द्वारा नुकसान झेलना पड़ता है। अतः कीटों का नियंत्रण अत्यंत महत्वपूर्ण है। कीटनाशकों के दुष्प्रभावों को देखते हुए एकीकृत कीट प्रबंधन पर अधिक बल देने की आवश्यकता है।

टमाटर का फलछेदक

यह एक बहुपौधभक्षी कीट है, जो कि टमाटर को नुकसान पहुंचाता है। इस कीट की सुंडिया कोमल पत्तियों और फूलों पर आक्रमण करती है तथा फिर फल मे छेद करके फल को ग्रसित करती है। फलछेदक की मादा शाम के समय पत्तों के निचले हिस्से पर हल्के पीले व सफेद रंग के अंडे देती हैं। इन अंडों से तीन से चार दिनों बाद हरे एवं भूरे रंग की सुंडियां निकलती हैं। पूरी तरह से विकसित सूंडी हरे रंग की होती है, जिनमें गहरे भूरे रंग की धारियां होती है। यह कीट फलों में छेद करके अपने शरीर का आधा भाग अंदर घुसाकर फल का गूदा खाती है। इसके कारण फल सड़ जाता है। इसका जीवनचक्र 4 से 6 सप्ताह में पूरा होता है।

तंबाकू की फलछेदक सुंडी

यह भी एक बहुपौधभक्षी कीट है। इसके अगले पंख स्लेटी लाल भूरे रंग के होते हैं। पिछले पंख मटमैले सफेद रंग के, जिसमें गहरे भूरे रंग की किनारी होती है। इसकी मादा पत्तों के नीचे 100 से 300 अंडे समूह में देती है, जिनको ऊपर से पीले भूरे रंग के बालों से मादा द्वारा ढक दिया जाता है। इन अंडो से 4 से 5 दिनों में हरे पीले रंग की सुंडियां निकलती हैं। ये प्रारम्भ मे समूह में रहकर पत्तियों की ऊपरी सतह खुरचकर खाती हैं। पूर्ण विकसित सूंडी जमीन के अंदर जाकर प्यूपा बनाती है। इस कीट का जीवनचक्र 30 से 40 दिनों में पूरा होता है। टमाटर की टहनियों पे किट संक्रमण [kit infection on tomato twigs]

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फल मक्खी

फल मक्खी आकार में छोटी होती है, परंतु काफी हानिकारक होती है। यह मक्खी बरसात के मौसम में अधिक नुकसान करती हैं। इनके वयस्कों के गले में पीले रंग की धारियां देखी जा सकती हैं। इस कीट की मादा मक्खी फल प्ररोह के अग्रभाग में अथवा फल के अंदर अंडे देती है। इन अंडों से चार-पांच दिनों में सफेद रंग के शिशु (मैगट) निकल जाते है। ये फलों के अंदर घुसकर इसके गूदे को खाना प्रारंभ कर देते हैं। ये सुंडियां तीन अवस्थाओं से गुजरती हैं तथा मृदा में पूर्णतः विकसित होने पर प्यूपा बन जाती हैं। इन प्यूपा से 8 से 10 दिनों में वयस्क मक्खी निकलती है। यह लगभग एक माह तक जीवित रहती हैं।

सफेद मक्खी

सफेद मक्खी का प्रकोप टमाटर की फसल की शुरूआत से अंत तक रहता है। इस कीट की मक्खी सफेद रंग की होती है और बहुत ही छोटी होती हैं। इसके वयस्क एवं शिशु दोनों ही फलों से रस चूसकर नुकसान पहुंचाते हैं। सफेद मक्खी की मादा पत्तों की निचली सतह में 150 से 250 अंडे देती हैं। ये अंडे बहुत महीन होते हैं जिन्हें नंगी आंखों से नहीं देखा जा सकता। इन अंडों से 5 से 10 दिनों में शिशु निकलते हैं। शिशु तीन अवस्थाओं को पार कर चैथी अवस्था में पहुंचकर प्यूपा में परिवर्तित हो जाते हैं। प्यूपा से 10 से 15 दिनों बाद में वयस्क निकलते हैं और जीवनचक्र फिर से आरंभ कर देते है। इस कीट के शरीर से मीठा पदार्थ निकलता रहता है, जो पत्तों पर जम जाता है। इस पर काली फफूंद का आक्रमण होता है तथा पौधों को नुकसान पहुंचता है।

सफेद मक्खी का पत्तीयों पर प्रकोप

टमाटर के पत्तों पर सफेद कीट [white pests on tomato leaf ]

पर्ण खनिक कीट

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यह एक बहुभक्षी कीट है, जो कि संपूर्ण विश्व में सब्जियों एवं फलों की 50 से अधिक किस्मों को नुकसान पहुंचाता है। इसकी मादा पत्ते के ऊतक एवं निचली सतह के अंदर अंडा देती है। अण्डों से दो-तीन दिनों बाद निकलकर शिशु पत्ते की दो सतहों के बीच में रहकर नुकसान पहुंचाते हैं। ये शिशु सर्पाकार सुरंगों का निर्माण करते हैं। इन सफेद सुरंगों के कारण प्रकाश संश्लेषण की क्रिया प्रभावित होती है तथा फसल की पैदावार पर प्रतिकूल असर पड़ता है। वयस्क शिशु 8 से 12 दिनों बाद मृदा में गिरकर प्यूपा बनाते हैं। इनसे 8 से 10 दिनों बाद वयस्क निकल जाते हैं।

पर्ण खनिक कीट से ग्रसित पत्ती में सर्पाकार सुरंग

कटुआ कीट

यह कीट छोटे पौधों को काफी नुकसान पहुंचाता है। कटुआ कीट छोटे पौधों को रात के समय काटते हैं और कभी-कभी कटे हुए छोटे पौधों को जमीन के अंदर भी ले जाते हैं। एक मादा सफेद रंग के 1200-1900 अंडे देती हैं। इनमें से चार पांच दिनों बाद सूंडी बाहर निकलती है। इसकी सुंडियां गंदी सलेटी भूरे-काले रंग की होती हैं। ये दिन के समय मृदा में छुपी हुई रहती हैं। पौधरोपण के समय से ही ये पौधे को मृदा की धरातल के बराबर तने को काटकर खाती हैं। इसकी सुंडियां लगभग 40 दिनों तक सक्रिय रहती हैं। इसका प्यूपा भी जमीन के अंदर ही बनता है। इसमें से लगभग 15 दिनों में वयस्क पतंगा निकलता है। इस कीट का जीवनचक्र 30 से 60 दिनों में पूरा हो जाता हैं।

टमाटर के पत्तों पर कीट से बनी सुरंग [insect tunnel on tomato leaves]

 

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कटुआ कीट का प्रकोप

एकीकृत कीट प्रबंधन

  • क्षतिग्रस्त फलों को इकट्ठा करके नष्ट कर दें।
  • खेत में सफाई पर विशेश ध्यान दें।
  • खेतों में फसलचक्र को बढ़ावा दें।
  • गर्मियों में खेत की गहरी जुताई करें।
  • अण्डों को और समूह में रहने वाली सुंडियों को एकत्रित करके नष्ट कर देन चाहिए।
  • टमाटर की 16 पंक्तियों के बाद दो पंक्तियां गेंदे की लगाएं और गेंदे पर लगी सुंडियों को मारते रहें।
  • रात्रि के समय रोशनी ‘प्रकाश प्रपंच‘ का इस्तेमाल करना चहिए।
  • नर वयस्कों को पकड़ने के लिए ‘फेरोमोन प्रपंच‘ (रासायनिक) का इस्तेमाल भी उपयोगी है। एक एकड़ जमीन में चार से पांच ट्रैप लगाने चाहिए।
  • फूल आने पर बैसिल्स थुरिनजियंसिस वार कुर्सटाकी5 लीटर प्रति हैक्टर (70 मि.ली. 100 लीटर पानी में डइपैल 8 लीटर) का छिड़काव करें।
  • ट्राइकोग्रामा प्रेटियोसम के अंडो का 20,000 प्रति एकड़ चार बार प्रति सप्ताह की दर से खेतों में प्रयोग करें।
  • सफेद मक्खी और पर्ण खनिक को पकड़ने के लिए पीले रंग के चिपचिपे (गोंद लगे हुए) लगे हुए ट्रैप का इस्तेमाल करना चाहिए। प्रति 20 मीटर में एक ट्रैप लगा सकते हैं।
  • फल मक्खी के नर वयस्कों को पकड़ने के लिए क्युन्योर नामक आकर्षक या पालम ट्रैप का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। 10 ग्राम गुड़ अथवा चीनी का घोल और 2 मि.ली. मैलाथियान (50 ई.सी.) प्रति लीटर पानी में घोल कर छिडकाव करें। मिथाइल यूजीनॉल (40 मि.ली.) और मैलाथियान (20 मि.ली.) (2 मि.ली. प्रति लीटर पानी) के घोल को बोतलों में डालकर टमाटर के खेत में लटकाने से इस कीट को नियंत्रित किया जा सकता है।
  • अधिक प्रकोप होने पर क्विनालफॉस 20 प्रतिशत (1.5 मि.ली. प्रति लीटर पानी) या लैम्डा-साईहैलोथ्रिन (5 प्रतिशत ई.सी.) या इमिडाक्लोप्रिड5 मि.ली. प्रति लीटर पानी या ट्रायजोफॉस 1 मि.ली. प्रति लीटर पानी का छिड़काव करें।
  • खेत तैयार करते समय मृदा में क्लोरपाइरिफोस 20 ई.सी. 2 लीटर का 20 से 25 कि.ग्रा. रेत में मिलाकर प्रति हैक्टर खेत में अच्छी तरह मिला दें।
टमाटर की खेती में हो सकती है लाखों की कमाई : जानें उन्नत किस्में

टमाटर की खेती में हो सकती है लाखों की कमाई : जानें उन्नत किस्में

पंचसितारा का हो प्लेट या घर की थाली, हर जगह मिलेगी टमाटर की लाली. टमाटर सब्जी या अन्य व्यंजनों में स्वाद का खट्टा मीठा तड़का ही नहीं, फ्लेवर भी देता है. टमाटर को स्वास्थ्य के लिये भी जाना जाता है. 

अगर किसान टमाटर की खेती करने की सोच रहे हैं तो यह किसानों के लिए सबसे बढ़िया फसल हो सकती है। टमाटर की खेती से किसान बहुत लाभ कमा सकते हैं. टमाटर की खेती कैसे और कब करें इसके बारे में किसानों को ज्यादा जानकारी नहीं होती है। जबकि टमाटर की खेती कर किसान लाखों कमा सकते हैं।

टमाटर की उन्नत किस्में

किसी भी फसल की अच्छी पैदावार और अच्छी कमाई अच्छे बीज पर निर्भर करती है. टमाटर की खेती के लिये भी उन्नत बीज का चुनाव करना होगा. टमाटर की उन्नत किस्में निम्नलिखित हैं:

अर्का रक्षक

भारत में सबसे ज्यादा उपयोग किए जाने वाले बीज में सबसे अच्छा अर्का रक्षक है। इसकी पैदावार सबसे ज्यादा होती है. इसमें रोग प्रतिरोधक क्षमता सबसे ज्यादा होता है. 

अर्का रक्षक की बेहतर क्वालिटी के कारण बाजार में इसकी मांग बहुत रहती है. अर्का रक्षक किसानों का सबसे पसंदीदा बीज माना जाता है.

पूसा शीतल

टमाटर की अच्छी पैदावार के लिये पूसा शीतल किस्म को माना जाता है. यह देशी किस्म का बीज है.

पूसा सदाबहार

पूसा सदाबहार की फसल की पैदावार लगभग 300 क्विंटल से लेकर 450 क्विंटल तक होती है।

अर्का विकास

देशी बीजों में अच्छे उत्पादन के लिये अर्का विकास बीज माना जाता है.

पूसा हाइब्रिड-1

टमाटर की पूसा हाइब्रिड किस्म के बीजों का बहुत सारे किसानो द्वारा फसल लगाया जाता है. यह भी एक उत्तम पैदावार के लिए इस्तेमाल किए जाने वाला बीज है.

रश्मि

टमाटर के हाईब्रिड बीजों में रश्मि बीज का नाम भी शामिल है.

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टमाटर की खेती का सही समय

मार्च से जुलाई के समय टमाटर काफी जल्दी बड़े होते हैं. उपयुक्त समय पर टमाटर की फसल लगाने से अच्छी पैदावार मिलती है. इसलिए आपको हम टमाटर की खेती करने के सही समय से जुड़ी जानकारी दे देते है. 

टमाटर की खेती उत्तरी मैदानी भाग में शरद और वसंत ऋतु में की जाती है. जबकि दक्षिणी भारत में टमाटर की खेती का सही समय जून – जुलाई, अक्टूबर – नवंबर और जनवरी – फरवरी होता है. 

पंजाब के किसानों के लिये बसंत से ग्रीष्म ऋतु का मौसम टमाटर की खेती के लिए सही समय है. उत्तम जलवायु टमाटर की खेती के लिये बहुत जरूरी है. हालाँकि टमाटर की खेती गर्मी और सर्दी दोनों ही मौसम में की जाती है। टमाटर की खेती के लिए तापमान 20 डिग्री से लेकर 25 डिग्री के बीच होना सबसे उपयुक्त माना जाता है.

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टमाटर की खेती के लिए भूमि कैसे तैयार करें

टमाटर की खेती के लिए भूमि को अच्छे से खेती के लिए तैयार करना जरूरी होता है. भूमि के अंदर तोता हल की मदद से अच्छी तरह से जुताई करनी चाहिये और पाटा की मदद से जमीन को समतल कर क्यारियां बना देनी चाहिये. 

इस भूमि पर हल्का हल्का पानी लगा देना है और उस जमीन की कल्टीवेटर हल से जोत देना चाहिये. फिर से पाटा लगाकर जमीन को अच्छे तरीके से समतल कर देनी चाहिये जिससे मिट्टी समतल और भूरभूरी हो जाएगी. इसके बाद जमीन टमाटर के पोधों की रोपाई के लिए तैयार है.

बीज की मात्रा

टमाटर की खेती के लिये बीज न ही कम मात्रा में डालना है और न ही ज्यादा मात्रा में. अगर आप हाईब्रीड क़िस्मों के बीज का इस्तेमाल करते हैं तो 200 से 250 ग्राम बीज एक हेक्टेयर में डाल सकते हैं. वहीं अन्य क़िस्मों के बीज की बात की जाए तो आप एक हेक्टेयर में 350 से 400 ग्राम बीज एक हेक्टेयर में इस्तेमाल करें.  

टमाटर की इन किस्मों की खेती से किसान हो सकते हैं मालामाल, जानें टमाटर की खेती की पूरी विधि

टमाटर की इन किस्मों की खेती से किसान हो सकते हैं मालामाल, जानें टमाटर की खेती की पूरी विधि

टमाटर (Tomato; tamatar) एक ऐसी सब्जी है जिसका प्रयोग लगभग भारत के हर घर में किया जाता है। इसलिए टमाटर की फसल किसानों के लिए बेहद लाभदायक साबित हो सकती है क्योंकि इसकी बढ़ी हुई डिमांड को पूरा करने के लिए किसानों के पास हर मौसम में पर्याप्त मौके होते हैं। भारत में टमाटर की खेती मुख्य रूप से राजस्थान, कर्नाटक, बिहार, उड़ीसा, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल और आंध्रप्रदेश में की जाती है। यदि किसान टमाटर की खेती में उन्नत किस्मों का इस्तेमाल करें तो इसकी खेती से अच्छी खासी कमाई की जा सकती है।

बाजार में उपलब्ध टमाटर की उन्नत किस्में

आजकल वैसे तो बाजार में टमाटर की बहुत प्रकार की किस्में उपलब्ध हैं, लेकिन कुछ उन्नत किस्में भारतीय किसान बहुतायत से प्रयोग करते हैं, जिससे किसानों को आमदनी होने की संभावना बढ़ जाती है। बाजार में उपलब्ध टमाटर की उन्नत किस्मों में पंजाब छुहारा, पीकेएम 1, पूसा रूबी, पैयूर-1, शक्ति, पंत टी3, सोलन गोला, अर्का मेघाली, सएल 120, पूसा गौरव, एस 12, पंत बहार, पूसा रेड प्लम, पूसा अर्ली ड्वार्फ, पूसा रूबी, सीओ-1, सीओ 2, सीओ 3, एस-12, अर्का सौरभ, अर्का विकास, अर्का आहूती, अर्का आशीष, अर्का आभा, अर्का आलोक, एचएस101, एचएस102, एचएस110, हिसार अरुण, हिसार ललिता, हिसार ललित, हिसार अनमोल, केएस.2, नरेंद्र टमाटर 1 और नरेंद्र टमाटर 2 प्रमुख हैं। इन किस्मों के साथ ही यदि हम टमाटर की संकर किस्मों की बात करें तो उनमें COTH 1 हाइब्रिड टमाटर, रश्मि, वैशाली, रूपाली, नवीन, अविनाश 2, MTH 4, सदाबहार, गुलमोहर, अर्का अभिजीत, अर्का श्रेष्ठ, अर्का विशाल, अर्का वरदान, पूसा हाइब्रिड 1, पूसा हाइब्रिड 2 और सोनाली प्रमुख हैं।


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कितना हो सकता है उत्पादन

अगर किसान टमाटर की उन्नत किस्मों का उपयोग करता है, तो कुछ किस्मों में एक एकड़ में 500 क्विंटल तक टमाटर की पैदावार हो सकती है। जबकि सभी किस्मों में इतनी पैदावार नहीं होती। टमाटर की पैदावार मिट्टी की उर्वरता, मौसम, खाद, सिंचाई और देखभाल पर निर्भर करती है।

टमाटर की रोपाई का सही समय क्या है

यदि किसान सितंबर-अक्टूबर में टमाटर की रोपाई करना चाहते हैं तो इसकी नर्सरी जुलाई माह के अंत में तैयार कर लें। इसके बाद पौधे की रोपाई सितम्बर या अक्टूबर में करें। इसके साथ ही यदि किसान जनवरी माह में टमाटर की रोपाई करना चाहते हैं तो इसकी नर्सरी नवम्बर माह में तैयार कर लें। इसके बाद जनवरी या फरवरी में टमाटर की रोपाई प्रारम्भ कर दें।

कैसे तैयार करें टमाटर की पौध

टमाटर की खेती के लिए टमाटर की पौध को तैयार करना बेहद महत्वपूर्ण कार्य है, इसके लिए किसान को ऐसी नर्सरी बनाना चाहिए जहां पानी का ठहराव ना हो। नर्सरी बनाने के लिए किसान को जमीन से ऊपर 90 से 100 सेंटीमीटर चौड़ी और 10 से 15 सेंटीमीटर ऊंची मिट्टी एकत्र करना चाहिए और उसमें नर्सरी बनाना चाहिए, ऐसे में नर्सरी में पानी के ठहराव की संभावना कम हो जाती है। टमाटर के बीजों को नर्सरी में 4 सेंटीमीटर की गहराई में बोना चाहिए। इसके बाद थोड़ी सिंचाई भी करना चाहिए ताकि नमी बरकरार रहे। जब नर्सरी में पौधे अंकुरित हो जाएं तो उसके बाद लगभग 5 सप्ताह का इन्तजार करना चाहिए। 5 सप्ताह के बाद पौधे 10-15 सेंटीमीटर लम्बे हो जायेंगे। जिनको सावधानी से खेत में रोपाई करना चाहिए।

टमाटर की खेती में विशेष ध्यान रखने वाली चीजें

टमाटर की खेती के लिए इस्तेमाल की जा रही जमीन का पीएच मान 7 से 8.5 के बीच होना चाहिए। इस खेती के लिए काली दोमट मिट्टी, रेतीली दोमट मिट्टी और लाल दोमट मिट्टी बेहद अच्छी मानी जाती है। इस प्रकार की मिट्टियों में टमाटर की फसल ज्यादा अच्छी होती है। यदि टमाटर गर्मियों के मौसम में लगाया गया है, तो हर सप्ताह सिंचाई आवश्यक है। जबकि सर्दी के मौसम में लगाए गए टमाटर में 15 दिनों में सिंचाई की जा सकती है। टमाटर की अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए समय-समय पर खेत में निराई-गुड़ाई करते रहना चाहिए।

टमाटर की खेती में किस प्रकार से इस्तेमाल करें खाद एवं उर्वरक

टमाटर की खेती में जैविक खाद का इस्तेमाल बहुतायत से किया जाता है। इसके अलावा किसान प्रति हेक्टेयर नेत्रजन-100 किलोग्राम, स्फूर-80 किलोग्राम तथा पोटाश-60 किलोग्राम के हिसाब से रासायनिक उर्वरक का इस्तेमाल कर सकते हैं।


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टमाटर की खेती में किस प्रकार से करें खरपतवार का नियंत्रण

टमाटर की खेती में पानी की सिंचाई होती रहती है, जिससे खरपतवार को फलने फूलने में सहायता मिलती है। इसके नियंत्रण के लिए किसान भाई निराई-गुड़ाई के आलावा खरपतवार नाशकों का इस्तेमाल भी कर सकते हैं। खरपतवार नियंत्रण के लिए किसान भाई ‘लासो’ खरपतवार नाशी का 2 किलोग्राम/हैक्टेयर कि दर से छिड़काव कर सकते हैं। इसके अलावा टमाटर की रोपाई के 4-5 दिन बाद स्टाम्प का भी 1 किलोग्राम प्रति हैक्टर की दर से इस्तेमाल कर सकते हैं। इससे खरपतवार की समस्या का पूर्ण समाधान हो जाता है और फसल के ऊपर किसी भी प्रकार का कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता।
टमाटर की लाली लाएगी खुशहाली

टमाटर की लाली लाएगी खुशहाली

आप कल्पना कर सकते हैं कि किसी किसान ने एक एकड़ जमीन के आधे हिस्से में टमाटर की खेती और आधे में अपने परिवार के लिए गेहूं आदि फसलें उगाकर अपनी सात बेटियों की शादी तो करदी, बाकी जिम्मेदारियां भी बखूबी निभाईं। आज हम उस किसान की सफलता की कहानी का जिक्र इस​ लिए कर रहे हैं ताकि आपको टमाटर की लाली का एहसास हो सके। टमाटर की संकर यानी हा​इब्रिड एवं मुक्त परागित सामान्य किस्में बाजार में मौजूद हैं। सामान्य किस्मों का​ छिलका पताला एवं  इनमें रस व खटास ज्यादा होती है। इसके अलावा हाइब्रिड किस्मों में गूदा ज्यादा व छिलका मोटा होता है। मोटे छिलके वाली किस्में ट्रांसपोर्ट के लिहाज से ज्यादा अच्छी रहती हैं। हाइब्रिड किस्मों को कई दिन तक सामान्य तापमान में भी सुरक्षित रखा जा सकता है। 

बुवाई का समय

  उत्तर भारत के मैदानी ​इलाकों में टमाटर की दो फसलें ली जाती हैं। एक फसल जून जुलाई में नर्सरी डालकर 25 दिन बाद पौध रोपी जाती है। इससे अक्टूबर नवंबर में फल मिलने लगते हैं। उधर अक्टूबर माह में तैयार पौध से रोपित पौधों से जनवरी से अप्रैल तक फल प्राप्त होते हैं। हाइ​ब्रिड किस्मों को ठंड के सीजन में लगाना श्रेयस्कर रहता है। 

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खेत की तैयारी

  टमाटर को हर तरह की जमीन में लगाया जा सकता है। टमाटर की खेती बैड बनाकर करने से फलों के खराब होने की आशंका नहीं रहती। आखिरी जुताई में 25 से 30 टन सड़ी हुई गोबर की खाद मिलाएं। इसके अलावा रासायानिक उर्वरकों में 150 किलोग्राम नत्रजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस एवं 60 किलोग्राम पोटाश प्रति हैक्टेयर मिट्टी में मिलाएं। इसके बाद खेत में बैड तैयार करें। बैड पौध के लगाने लायक होने पर ही तैयार करेंं 

नर्सरी डालना

पौधे तैयार करने के लिए नर्सरी डालने के लिए चार से छह इंच उूंची क्यारी बनाते हैं। लम्बाई जरूरत के हिसाब से तथा चौड़ाई एक मीटर रखते हैं ताकि पौध की क्यारी के दोनों तरफ बैठकर खरपतवार आदि को निकाला जा सके। क्यारी में सड़ी हुई गोबर की खाद मिलाते हैं। बीज को फफूदंनाशनक कार्बन्डा​जिम, बाबस्टीय या ट्राईकोडर्मा में से किसी एक से उपचारित कर लेेना चाहिए। बैड में य​दि डिबलर हो तो डेढ़ से दो सेण्टीमीटर गहरे गड्ढे बनाकर बराबर दूरी व लाइन में बीज को डालना चहिए। इसके बाद जालीदार चलने से गोबर सड़ी और भुरभुरी खाद को क्यारी के समूचे हिस्से पर छान देना चाहिए। तदोपरांत क्यारी को जूट की बोरी या पुआल आदि से ढक दें। हर दिन क्यारी पर हजारा से हल्का पानी नमी बनाए रखने लायक देते रहें। पांच छह दिन में बीजों में अंकुरण हो जाएगा। पाधों के एक हफ्ते का हो जाने पर एम 45, बाबस्टीन आदि दवा की दो ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी की दर से पौध पर छिड़काव करें। संकर किस्मों में पत्तों में सुरंग बनने जैसे लक्षण दिखें तो मोनोक्रोटोफास दवा की दो एमएल मात्रा एक लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। 

पौधों को खेत में रोपना

  जब पौधों में पांच से छह पत्ते ​निकल आएं और लम्बाई 15 से 20 सेण्टीमीटर की हो जाए तो रोपने की तैयारी करनी चाहिए। खेत में डेढ़ से दो फीट चौड़े बैड बनाएं। बैड की बगल में नाली हो । पंक्ति से पंक्ति की दूरी 60 एवं पौधे से पौधे की दूरी 45 सेण्टीमीटर रखनी चाहिए। ज्यादा विकास करने वाली किस्मों के लिए दूरी को और बढ़ाया जा सकता है। 

सिंचाई

  पहली सिंचाई रोपण के बाद की जाती है। इसके बाद जरूरत होने पर सिंचाई करें। 

साथ में लगाएं बेबीकार्न

टमाटर को कार्बन की बेहद आवश्यकता होती है और मक्का कार्बन का सबसे ज्यादा उत्सर्जन करती है। टमाटर जब खेत में रोप दिए जाएं तो 20 से 25 दिन बाद टमाटर के बीज बीच में बेकीकार्न का बीज लगादें। बीज पानी लगाने से पहले लगाएं। इसका लाभ यह होगा कि टमाटर की लागत को निकालने लायक आय बेबीाकर्न से हो जाएगी। इसके अलावा टकाटर की फसल को मक्का कार्बन प्रदान करेगी। इससे फलों की संख्या, ताजगी व गुणवत्ता बेहद अच्छी रहेगी।

टमाटर की खेती : अगस्त क्यों है टमाटर की खेती के लिए वरदान

टमाटर की खेती : अगस्त क्यों है टमाटर की खेती के लिए वरदान

बारिश में आम तौर पर खाने में सब्जियों के विकल्प कम हो जाते हैं। खास तौर पर टमाटर (Tomato) के भाव बारिश में अधिक रहने से किसानो के लिए बरसात में टमाटर की खेती (Barsaat Mein Tamatar Ki Kheti), मुनाफे का शत प्रतिशत सफल सौदा कही जा सकती है।

सड़ने गलने का खतरा

बारिश के दिनों में फसलों के सड़ने-गलने का खतरा रहता है। अल्प काल तक स्टोर किए जा सकने के कारण टोमैटो कल्टीवेशन (Tomato Cultivation) यानी टमाटर की खेती (tamaatar kee khetee) बारिश में और भी ज्यादा परेशानी का सौदा हो जाती है।



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ऐसे में सबसे अहम सवाल यह उठता है कि, बरसात में टमाटर की खेती कैसे करें (barsaat mein tamatar ki kheti kaise karen) या फिर बारिश के मौसम में टमाटर की खेती प्रारंभ करने का उचित समय क्या है, या फिर बरसाती टमाटर की खेती करते समय किन बातों का खास तौर पर ध्यान रखना चाहिए आदि, आदि। लेकिन याद रखें कि, अति बारिश की स्थिति में टमाटर की सुकुमार फसल के खराब होने का खतरा जरा ज्यादा बढ़ जाता है। हालांकि यह भी सत्य है कि, बरसात में टमाटर की खेती कठिन जरूर है, लेकिन असंभव कतई नहीं।

मेरीखेती पर करें टमाटर की खेती से सम्बंधित जिज्ञासा का समाधान

चिंता न करें मेरीखेती पर हम बताएंगे टमाटर की ऐसी किस्मों के बारे में, जिन्हें वैज्ञानिक तरीके से खास तौर पर बारिश में टमाटर की किसानी के लिए ईजाद किया गया है। साथ करेंगे आपकी सभी जिज्ञासाओं का समाधान भी।

बारिश में टमाटर की नर्सरी की तैयारी अहम

बारिश में टमाटर की खेती के लिए उसकी पौध तैयार करना किसान मित्रों के लिए सबसे अहम कारक है। टमाटर की पौध को प्रोट्रे या फिर सीधे खेत में तैयार किया जा सकता है। सीधे तौर पर खेत में टमाटर की पौध की तैयारी के वक्त, सबसे ज्यादा ध्यान रखने वाली बात यह है कि जहां टमाटर की नर्सरी बनाई जा रही है, वह भूमि बारिश के पानी में न डूबती हो। साथ ही इस स्थान पर कम से कम 4 घंटे तक धूप भी आती हो। टमाटर की पौध की तैयारी करने वाला स्थान, भूमि से यदि एक से दो फीट की ऊंचाई पर हो तो तेज या अति बारिश की स्थिति में भी टमाटर की पौध सुरक्षित रहती है।

टोमैटो नर्सरी की नापजोख का गणित

टोमैटो नर्सरी (Tomato Nursery) में क्यारियों का गणित सबसे अधिक अहम होता है। किसानों को क्यारी बनाते समय यह ध्यान रखना चाहिए, कि इनकी चौड़ाई 1 से 1.5 मीटर हो। इसकी लंबाई 3 मीटर तक हो सकती है। इस नापजोख की 4 से 6 क्यारियों की तैयारी के उपरांत बारी आती है टमाटर के बीजारोपण की।

टमाटर का बीजारोपण

टमाटर के बीजों के बीजारोपण के पहले कृषि वैज्ञानिक एवं अनुभवी किसान टमाटर बीजों को बाविस्टिन या थिरम से उपचारित करने की सलाह देते हैं।

टमाटर के पौधों की रोपाई में पानी की भूमिका

बीजारोपण के बाद नर्सरी एक महीने से लेकर 40 दिन में तैयार हो जाती है। नर्सरी में तैयार टमाटर की पौध को इच्छित भूमि में रोपने के 10 दिन पहले, नर्सरी में तैयार किए जा रहे टमाटर के पौधों को पानी देना बंद करने से टमाटर के पौधे तंदरुस्त एवं विकास के लिए पूरी तरह तैयार हो जाते हैं। इस विधि से टमाटर रोपने के कारण, रोपाई के बाद टमाटर के पौधों के सूखने का खतरा भी कम हो जाता है।

टमाटर की रोपाई के लिए अगस्त है खास

महीना अगस्त का चल रहा है, एवं यह समय किसानो के लिए टमाटर की खेती के लिए सबसे मुफीद माना जाता है। अगस्त में रोपाई करने के लिए किसान को जुलाई में टमाटर की नर्सरी तैयार करनी होती है। हालांकि, जुलाई में टमाटर की पौध तैयार करने से चूक जाने वाले किसान अगस्त में भी टमाटर की नर्सरी तैयार कर सकते हैं, क्योंकि भारत में बरसाती टमाटर की पैदावार के लिए सितंबर माह में भी टमाटर की पौध की रोपाई किसान करते हैं। हालांकि, ज्यादा मुनाफा हासिल करने के लिए कृषि वैज्ञानिक जुलाई में टमाटर की नर्सरी तैयार करने और अगस्त में रोपाई करने की सलाह देते हैं।



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टमाटर की खेती साल भर खास-खास

भारतीय रसोई में टमाटर की मांग साल भर बनी रहती है। दाल से लेकर सब्जी, सूप सभी में टमाटर अपनी रंगत एवं स्वाद से जायके का लुत्फ बढ़ा देता है। भारत में आम तौर पर टमाटर की खेती साल भर की जाती है। शरद यानी सर्दी के मौसम के लिए टमाटर की फसल की तैयारी हेतु किसान के लिए जुलाई से सितम्बर का मौसम खास होता है। इस कालखंड की फसल में किसान को टमाटर की पौध की बारिश से रक्षा करना अनिवार्य होता है। बसंत अर्थात गर्मी में टमाटर की पैदावार के लिए साल में नवम्बर से दिसम्बर का समय खास होता है। पहाड़ी इलाकों में मार्च से अप्रैल के दौरान भी टमाटर के बीजों को लगाया जा सकता है। जुलाई-अगस्त माह में रोपण आधारित टमाटर की खेती पर किसान को फरवरी से मार्च तक ध्यान देना होता है। इसी तरह नवंबर-दिसंबर में टमाटर रोपण आधारित किसानी मेें किसान जून-जुलाई तक व्यस्त रहता है।

एक हेक्टेयर का गणित

जीवांशयुक्त दोमट मिट्टी टमाटर की पौध के लिए सहायक होती है। मिट्टी की ऐसी गुणवत्ता वाले एक हेक्टेयर खेत में किसान टमाटर के 15 हजार पौधे लगाकर अपना मुनाफा पक्का कर सकता है।

देसी के बजाए संकर की सलाह

जुलाई के माह में तैयार की जाने वाली बारिश के टमाटर की खेती के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने टमाटर की सहायक किस्में सुझाई हैं। जुलाई माह में टमाटर की बुवाई के इच्छुक किसानों को वैज्ञानिक, कुछ देसी को किस्मों से बचने की सलाह देते हैं। इन देसी किस्म के टमाटर के पौधों में बारिश के दौरान मौसमी प्रकोेप का असर देखा जाता है। कीट लगने या दागी फल ऊगने से किसान की कृषि आय भी प्रभावित हो सकती है।



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ऐसे में सलाहकार टमाटर की देसी किस्म के बजाए संकर प्रजाति के बीजों का इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं। टमाटर के संकर प्रजाति के बीजों की खासियत यह है, कि यह बीज किसी भी तरह की जमीन पर पनपने में सक्षम होते हैं। साथ ही देसी प्रजाति के बजाए संकर किस्म की टमाटर की खेती किसान के लिए अनुकूल परिस्थितियों में फायदे का शत प्रतिशत सौदा साबित होती है।

टमाटर की कुछ खास प्रजातियां

भारत के किसान, कृषि भूमि की गुणवत्ता के लिहाज से अपने अनुभव के आधार पर, स्थानीय तौर पर प्रचलित किस्मों के टमाटर की खेती करते हैं। हालांकि, टमाटर की ऐसी कुछ किस्में प्रमुख हैं जिनकी भारत में मुख्य तौर पर खेती की जाती है।

टमाटर की कुछ संकर प्रजातियां :

  • पूसा सदाबहार
  • स्वर्ण लालिमा
  • स्वर्ण नवीन
  • स्वर्ण वैभव (संकर)
  • स्वर्ण समृद्धि (संकर)
  • स्वर्ण सम्पदा (संकर)

टमाटर की कुछ खास उन्नत देसी किस्में :

  • पूसा शीतल
  • पूसा-120
  • पूसा रूबी
  • पूसा गौरव
  • अर्का विकास
  • अर्का सौरभ
  • सोनाली

हाइब्रिड टोमैटो (Hybrid Tomato) की खासे प्रचलित किस्में :

  • पूसा हाइब्रिड-1
  • पूसा हाइब्रिड-2
  • पूसा हाइब्रिड-4
  • रश्मि और अविनाश-2
  • अभिलाष
  • नामधारी इत्यादि

बरसाती टमाटर की प्रचलित किस्म

बरसाती टमाटर की उमदा किस्मों की बात करें तो बारिश में अभिलाष टमाटर के बीज बोने की सलाह कृषि विशेषज्ञ एवं सलाहकार देते हैं। इसकी वजह, इसकी कम लागत में होने वाली अधिक पैदावार बताई जाती है। बारिश के टमाटर की उम्मीद से अधिक पैदावार के लिए जुलाई से लेकर सितंबर तक अभिलाष टमाटर के बीज रोपकर नर्सरी तैयार करने की सलाह दी जाती है।

अभिलाष किस्म की खासियत

कम लागत में किसान की भरपूर कमाई की अभिलाषा पूरी करने वाला, अभिलाष किस्म का टमाटर कई खूबियों से भरपूर है। बरसाती टमाटर की खेती के लिए अभिलाष टमाटर का बीज उपयुक्त माना गया है। इस प्रजाति का टमाटर भारत के विभिन्न राज्यों में रबी, खरीफ दोनों सीजन में उगाया जाता है। इस संकर प्रजाति के बीज की खासियत यह भी है कि, इसके पौधे में पनपने वाले फल आकार में एक समान होते हैं। अपने जीवन के अंतिम वक्त तक समान आकार के टमाटर उगाने में सक्षम, अभिलाष प्रजाति के टमाटर के बीज से किसान को बारिश में भी टमाटर की अच्छी पैदावार प्राप्त होती है।



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बाजार में मिलने वाले अभिलाष टमाटर बीज की दर 50 से 60 ग्राम प्रति एकड़ मानी जाती है। इससे हासिल टमाटर के फल का रंग आकर्षक लाल तथा आकार गोल होता है। दी गई जानकारी के अनुसार, नर्सरी की तैयारी से लेकर 65 से 70 दिनों के समय काल में अभिलाष प्रजाति के टमाटर की पहली तुड़ाई संभव हो जाती है। वजन की बात करें, तो इस प्रजाति के टमाटर के फलों का औसत वजन अनुकूल परिस्थितियों में 75 से 85 ग्राम अनुमानित है।

अभिलाष टमाटर की खेती का इन राज्यों में प्रचलन

अभिलाष प्रजाति के टमाटर की खेती मूल रूप से राजस्थान, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, पंजाब, बिहार, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र राज्य के किसान करते हैं।

शिमला मिर्च, बैंगन और आलू के बाद अब टमाटर की कीमतों में आई भारी गिरावट से किसान परेशान

शिमला मिर्च, बैंगन और आलू के बाद अब टमाटर की कीमतों में आई भारी गिरावट से किसान परेशान

हरियाणा राज्य में टमाटर की स्थिति गंभीर रूप से खराब हो गई है। यहां टमाटर केवल 3 से 4 रुपये किलो की कीमत पर बेचा जा रहा है। लाने ले जाने का किराया तक भी नहीं निकल पा रहा है। इसकी वजह से किसानों में गुस्सा है। जिसके चलते किसान अपने टमाटरों को सड़क पर ही फेंक रहे हैं। रबी का सीजन भी किसानों के लिए संकट बन रहा है। मार्च माह में बारिश के साथ ही ओलावृष्टि से सरसों और गेंहू की फसल को अच्छा-खासा नुकसान पहुंचा है। किसानों की हानि की भरपाई तक नहीं हो पा रही है। बहुत सारे राज्यों में मिर्च, सेब की फसल भी बर्बाद होने की हालत में है। फिलहाल, यह ताजा खबर सामने आ रही है, कि टमाटर को लेकर सामने आ रही है। टमाटर की यह स्थिति हो गई है, कि मंडी में 3 से 4 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेकी जा रही है। इतनी कम कीमतों में भाड़ा का खर्चा तक न निकल पाने से किसान काफी चिंतित हैं।

निराश किसान सड़कों पर फेंक रहे टमाटर

टमाटर की यह बुरी स्थिति हरियाणा राज्य से सुनने आई है। हरियाणा राज्य के चरखी दादरी जनपद क्षेत्र में टमाटर 3 से 4 रुपये किलो के भाव से ही बिक रहा है। दरअसल, किसान अपने टमाटर को लेकर चरखी मंडी में बेचने के लिए पहुंचे हैं। उन कारोबारियों ने टमाटर का दाम महज 3 से 4 रुपये प्रति किलो ही लगाया। इतने कम भाव सुनकर किसान भड़क गए। यातायात को ना निकलता देख उन्होंने अपने टमाटरों को सड़कों पर ही फेंक दिया है।

दोगुनी मार से किसान काफी हताश हैं

हरियाणा राज्य के चरखी दादरी में बड़ी तादात में किसान खेती-बाड़ी से जुड़े हैं। मार्च माह में बारिश के साथ ओलावृष्टि से सरसों, गेंहू सहित बाकी फसलों को हानि हुई था। टमाटर की वर्तमान में चल रही कीमतों ने किसान को चिंतित कर दिया है। किसान इस दौरान दोहरी मार सहन करने की हालत में नहीं है।

टमाटर की इतनी बड़ी दुर्दशा क्यों हुई है

हरियाणा के बहुत सारे जनपदों में टमाटर की बुरी स्थिति हो चुकी है। कहा गया है, कि इस बार टमाटर का काफी ज्यादा उत्पादन हुआ है। हालाँकि टमाटर की इतनी खपत नहीं है। टमाटर न तोड़ पाने की वजह से टमाटर खेत में ही सड़ने लग चुके हैं। किसान मंडी में टमाटर बेचने जा रहे हैं, तो उन्हें मनमाफिक कीमत ही नहीं मिल पा रही है। ऐसी हालत में अब किसान क्या करें। सड़कों पर टमाटर फेंकना ही किसानों की मजबूरी बन चुकी है।

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सरकारी तंत्र ने इस विषय पर क्या कहा है

हरियाणा के सरकारी तंत्र का कहना है, कि कुछ इलाकों में ओलावृष्टि के साथ हुई बारिश से टमाटर बर्बाद हो चुका है। कीटों का संक्रमण भी टमाटर पर देखने को मिल रहा है। किसानों की सहायता की हर संभव प्रयास किया जा रहा है। राज्य सरकार का प्रयास है, कि टमाटर का समुचित भाव किसानों को मिलना चाहिए।
गर्मियों में ऐसे करें टमाटर की खेती, जल्द ही हो जाएंगे मालामाल

गर्मियों में ऐसे करें टमाटर की खेती, जल्द ही हो जाएंगे मालामाल

भारत में टमाटर एक मुख्य सब्जी है, जिसे प्रतिदिन किचन में इस्तेमाल किया जाता है। इसलिए इसकी साल भर मांग रहती है। भारत में टमाटर को लगभग हर मौसम में उगाया जाता है। यह एक व्यापारिक फसल है, जिसे सबसे पहले दक्षिण अमेरिका के पेरू में उगाया जाता था। इसके बाद इसका प्रसार दुनिया के अन्य देशों में हुआ। अगर हम आलू को छोड़ दें तो यह दुनिया की दूसरी सबसे ज्यादा उगाई जाने वाली फसल है। टमाटर विटामिन ए, पोटेशियम और खनिजों से भरपूर होता है। सब्जी के अलावा इसका उपयोग जूस, सूप, पाउडर और कैचअप बनाने भी किया जाता है। भारत में टमाटर का उत्पादन मुख्य तौर पर बिहार, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, उड़ीसा, महांराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल में किया जाता है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि गर्मियों के मौसम में टमाटर की खेती किस तरह से करें ताकि आपको कम समय में ज्यादा मुनाफा प्राप्त हो सके।

मिट्टी का चुनाव

टमाटर की फसल को वैसे तो हर प्रकार की मिट्टी में आसानी से उगाया जा सकता है, लेकिन इसके लिए  रेतली, चिकनी, दोमट, काली और लाल मिट्टी ज्यादा उपयुक्त मानी जाती है। खेत का चयन करते समय ध्यान रखें कि वहां पानी के निकास की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। टमाटर की फसल के लिए मिट्टी का पीएच मान 7-8.5 के बीच होना चाहिए। खारी मिट्टी में टमाटर की फसल के बेहतर परिणाम देखने को मिलते हैं।

टमाटर की किस्में

बाजार में आमतौर पर टमाटर की देशी किस्में और हाइब्रिड किस्में उपलब्ध हैं। देशी किस्मों में पूसा शीतल, पूसा-120, पूसा रूबी, पूसा गौरव, अर्का विकास, अर्का सौरभ और सोनाली प्रमुख हैं। जबकी हाइब्रिड किस्मों में पूसा हाइब्रिड-1, पूसा हाइब्रिड-2, पूसा हाईब्रिड-4, रश्मि और अविनाश-2 प्रमुख हैं।

जमीन की तैयारी

टमाटर की पौध लगाने के लिए जमीन को 3 से 4 बार जुताई करके पाटा लगाकर समतल कर दें। आखिरी बार जुताई करने के पहले खेत में सड़े हुए गोबर की खाद और नीम केक डाल सकते हैं। इसके बाद खेत में मिट्टी के बेड बना लें। ध्यान रखें कि बेड की चौड़ाई 80 से 90 सेंटीमीटर के बीच होनी चाहिए। इसके बाद मिट्टी को सूरज की तेज धूप में कुछ दिनों के लिए खुला छोड़ दें। इससे मिट्टी में मौजूद कीट, जीव और रोगाणु नष्ट हो जाएंगे। अगर किसान भाई चाहें तो इसके लिए बेड के ऊपर  पारदर्शी पॉलीथीन की परत भी लगा सकते हैं। जो कोटों को नष्ट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह भी पढ़ें : टमाटर की इन किस्मों की खेती से किसान हो सकते हैं मालामाल, जानें टमाटर की खेती की पूरी विधि

टमाटर का रोपण

खेत में टमाटर का रोपण करने के इसे नर्सरी में तैयार किया जाता है। नर्सरी में टमाटर की बीजों को 1.5 सेंटीमीटर चौड़े और 20 सेंटीमीटर ऊंचे बेड पर बोयें। नर्सरी में टमाटर के बीजों को 4 सेंटीमीटर की गहराई में बोएं, इसके बाद उनके ऊपर थोड़ी मिट्टी डाल दें। बुवाई के बाद मिट्टी के बेड को प्लास्टिक शीट से ढक दें और स्प्रेयर के मदद से रोज सिंचाई करें। बुवाई के 20 से 25 दिन बाद नर्सरी में टमाटर के पौधे तैयार हो जाते हैं। पौधों में कुछ पत्ते दिखाई देने लगते हैं। जब बुवाई के 30 दिन पूरे हो जाएं, तब एक बार पानी से सिंचाई करें और टमाटर की पौध को उखाड़ लें। सिंचाई करने से मिट्टी नरम हो जाएगी और टमाटर के पौधों को उखाड़ने में आसानी होगी। रोपाई के पहले पौधे सूख न जाएं, इसके लिए पौधों को स्ट्रैपटोसाइकलिन घोल (1 ग्राम 40 लीटर पानी में मिलाकर) में भिगोएं। सामान्य जगहों पर गर्मियों में टमाटर की फसल को प्राप्त करने के लिए आमतौर पर पौध की रोपाई मार्च और अप्रैल माह में की जाती है। जबकी नर्सरी फरवरी माह में ही लगा दी जाती है। पहाड़ी इलाकों में नर्सरी मार्च-अप्रैल में बोई जाती है, जबकि पौध को अप्रैल-मई में खेत में स्थानांतरित किया जाता है। टमाटर की अलग-अलग किस्मों के अनुसार एक पेड़ से दूसरे पेड़ का फासला 30 से लेकर 75 सेंटीमीटर तक रखना चाहिए। बरसात के मौसम में यह फासला 120 सेंटीमीटर से लेकर 150 सेंटीमीटर तक रखना चाहिए।

बीज की मात्रा

नर्सरी में टमाटर की पौध को उगाने के लिए ज्यादा बीजों की जरूरत नहीं होती है। एक एकड़ जमीन में पौध उगाने के लिए 100 ग्राम बीज की मात्रा का प्रयोग करें। टमाटर की फसल को कीटों और बीमारियों से सुरक्षित रखने के लिए बीजों को उपचारित जरूर कर लें। इसके लिए थीरम या कार्बेनडाज़िम का इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके साथ ही उपचारित करने के लिए टराइकोडरमा का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। बीजों को उपचारित करने के बाद कुछ घंटों के लिए छांव में रख दें। इसके बाद नर्सरी में बीजों की बुवाई करें।

खाद एवं उर्वरक

मिट्टी की जुताई के समय 20 क्विंटल प्रति एकड़ के हिसाब से सड़ी गोबर की खाद का इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके अलावा 130 किलोग्राम यूरिया, 155 किलोग्राम फास्फेट और 45 किलोग्राम पोटाश प्रति एकड़ के हिसाब से डाल सकते हैं।

खरपतवार नियंत्रण

खरपतवार से छुटकारा पाने के लिए समय-समय पर निराई गुड़ाई करते रहें। इसके अलावा पौध को लगाने के 2 से 3 दिन बाद फ्लूकोरेलिन की 800 मि.ली. मात्रा को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें। इसके आलाव खेत के तापमान को कम करने के लिए पॉलीथीन की परत का प्रयोग भी कर सकते हैं।

टमाटर की फसल में सिंचाई

गर्मियों के मौसम में मिट्टी की मांग के मुताबिक हर 7-8 दिन में खेत की सिंचाई करते रहें। सर्दियों के मौसम में 12 से 15 दिन में फसल को पानी दें। टमाटर की फसल में फूल निकलने के समय सिंचाई अवश्य करें। इससे फसल की गुणवत्ता में सुधार होगा और पानी की उपलब्धता से फूल झड़ने की समस्या खत्म हो जाएगी। विशेषज्ञों द्वारा कहा जाता है कि हर 15 दिन में आधा इंच सिंचाई करने से पैदावार अधिक होती है।

टमाटर की तुड़ाई

टमाटर की रोपाई के 70 दिन बाद पौधे फल देना शुरू कर देते हैं। जैसे ही टमाटर गुलाबी होने लगे वैसे ही इनकी तुड़ाई शुरू कर देनी चाहिए। तुड़ाई के बाद आकार और रंग के आधार पर टमाटर को अलग कर दिया जाता है। इसके बाद टमाटरों को बांस की टोकरियों या लकड़ी के बक्सों में पैक करके बाजार में भेज दिया जाता है। लंबी दूरी तक ले जाने के लिए टमाटरों को वातानुकूलित वाहन से भेजा जाता है ताकि टमाटर खराब न होने पाएं।
घर पर इस तरीके से उगायें चेरी टमाटर, होगा जबरदस्त मुनाफा

घर पर इस तरीके से उगायें चेरी टमाटर, होगा जबरदस्त मुनाफा

भारत में इन दिनों खेती किसानी में लगातार नई तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है। जिससे देश में विदेशी फसलों की खेती भी बेहद आसानी से होने लगी है। अब किसान इन विदेशी फसलों का उत्पादन करके फसल को बाजार में आसानी से बेंच सकते हैं। भारत के बाजार में देखा गया है कि यहां विदेशी फसलों की उपलब्धता कम होती है, ऐसे में  किसानों को बाजार में उन फसलों का मनचाहा दाम मिलता है। जिससे देश के किसान नई तकनीक के द्वारा विदेशी फसलों की खेती करने के लिए प्रोत्साहित हो रहे हैं। आज हम आपको बताने जा रहे हैं चेरी टमाटर की खेती के बारे में। यह फसल पिछले कुछ सालों से भारतीय किसानों के बीच मशहूर हो रही है। इसे आप अपने बगीचे में भी उगा सकते हैं। चेरी टमाटर की बाजार में कई किस्में उपलब्ध हैं। इनमें काली चेरी ,चेरी रोमा, टोमेटो टो, कर्रेंट और येलो पियर प्रमुख हैं।

किचन गार्डन में इस तरह से उगायें चेरी टमाटर

चेरी टमाटर को आप अपने किचन गार्डन में आसानी से उगा सकते हैं। इसके लिए आप मिट्टी के बर्तनों या गमलों का उपयोग कर सकते हैं। गमलों को तैयार करने के लिए उनकी निचली सतह पर रेत डालें। इसके बाद उसे मिट्टी से भर दें। मिट्टी के साथ वर्मी कंपोस्ट को भी डाल सकते हैं। चेरी टमाटर की बुवाई बीजों के माध्यम से होती है। जिन्हें आप अपने नजदीकी नर्सरी या कृषि बीज भंडार से खरीद सकते हैं। बीजों की गमले में बुवाई कर दें और इसके बाद उनमें समय-समय पर पानी देते रहें। ये भी पढ़े: टमाटर की खेती में हो सकती है लाखों की कमाई : जानें उन्नत किस्में चेरी टमाटर के पौधे को गर्मियों में ज्यादा तो सर्दियों में कम पानी की जरूरत होती है। इसके पौधों को बीमारियों से ज्यादा खतरा रहता है। चेरी टमाटर के पौधों में ज्यादातर फंगल इंफेक्शन का खतरा होता है। इससे बचने के लिए गमले की मिट्टी में कॉपर ऑक्सीक्लोराइड के घोल का छिड़काव किया जा सकता है। यह छिड़काव महीने में ज्यादा से ज्यादा 2 बार कर सकते हैं।

जल्द ही मिलने लगता है उत्पादन

बुवाई के 2 माह के भीतर चेरी टमाटर का पौधा फल देने लगता है। इसका उपयोग सब्जी के साथ-साथ दवाई के रूप में भी किया जाता है। चेरी टमाटर का उपयोग कब्ज की बीमारी में किया जाता है। साथ ही इसका उपयोग कैंसर की कोशिकाओं को खत्म करने में भी किया जाता है। चेरी टमाटर के उपयोग से वजन कम करने में और गठिया रोग को खत्म करने में भी मदद मिलती है।
भारत में लाल टमाटर के साथ-साथ काले टमाटर की भी खेती शुरू हो चुकी है

भारत में लाल टमाटर के साथ-साथ काले टमाटर की भी खेती शुरू हो चुकी है

काले टमाटर की खेती सर्वप्रथम इंग्लैंड देश में चालू की गई थी। इंग्लैंड में इसको इंडिगो रोज टमाटर के नाम से जाना जाता है। दरअसल, यूरोप की मंडियों में लोग इसे सुपरफूड के नाम से भी जानते हैं। आमतौर पर टमाटर खाना प्रत्येक किसान को पसंद आता है। इसके अंतर्गत विटामिन के, विटामिन- सी एवं विटामिन-ए भरपूर मात्रा में पाई जाती है। इसका सेवन करने से विभिन्न प्रकार की बीमारियां दूर हो जाती हैं। ऐसे तो टमाटर का उपयोग सौंदर्य उत्पाद निर्मित करने के लिए भी किया जाता है। परंतु, टमाटर का सर्वाधिक उपयोग लोग सलाद के रूप में करते हैं। अधिकांश लोगों को यह लगता है, कि टमाटर केवल लाल रंग के ही होते हैं। परंतु, इस प्रकार की कोई बात नहीं है। टमाटर काले रंग में भी उपलब्ध होते हैं। उसकी खेती भारत के विभिन्न राज्यों में की जा रही है। विशेष बात यह है, कि लाल टमाटर की भांति ही काले टमाटर का भी उत्पादन किया जाता है।

काले टमाटर की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, काले
टमाटर की खेती करने के लिए गर्म जलवायु ज्यादा उपयुक्त मानी गई है। इसके लिए मृदा का पीएच मान 6 से 7 के मध्य होना बेहद आवश्यक है। ऐसी स्थिति में भारत के किसानों के लिए काले टमाटर की खेती करना अत्यधिक लाभकारी रहेगा। क्योंकि, भारत की जलवायु गर्म है। काले टमाटर की कीमत लाल टमाटर के तुलनात्मक काफी ज्यादा होती है। अब ऐसी स्थिति में किसान भाई इसका उत्पादन कर अच्छी-खासी आमदनी कर सकते हैं। परंतु, काले टमाटर के पौधों पर फल आने में थोड़ा विलंभ होता है। इस वजह से किसान भाइयों को इसकी खेती में थोड़े धीरज से कार्य लेने की जरूरत है।

हिमाचल प्रदेश में सर्वप्रथम काले टमाटर का उत्पादन शुरू हुआ है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि काले टमाटर की खेती सर्वप्रथम इंग्लैंड में शुरू की गई थी। यहां पर इस टमाटर का नाम इंडिगो रोज टोमेटो से प्रसिद्ध है। हालाँकि, यूरोप की मंडियों में लोग इसको सुपरफूड भी कहते हैं। फिलहाल, भारत के अंदर भी आजकल काले टमाटक की खेती शुरू हो चुकी है। हिमाचल प्रदेश में किसान काले टमाटर का उत्पादन कर रहे हैं। हिमाचल प्रदेश में विदेशों से इसके बीज मंगवाए गए थे। इसके उपरांत आहिस्ते-आहिस्ते अन्य राज्यों में भी काले टमाटर का उत्पादन शुरू हो गया। ये भी पढ़े: देसी और हाइब्रिड टमाटर में क्या हैं अंतर, जाने क्यों बढ़ रही है देसी टमाटर की मांग

किसान इसकी खेती से 4 लाख रुपये तक का मुनाफा अर्जित कर सकते हैं

काले टमाटर की रोपाई सर्दी के मौसम में की जाती है। जनवरी का माह इसकी खेती के लिए सबसे अच्छा होता है। बुवाई करने के तीन माह के उपरांत फल आने चालू हो जाते हैं। मतलब कि आप अप्रैल माह से काले टमाटर की तोड़ाई शुरू कर सकते हैं। यदि किसान भाई एक हेक्टेयर में काले टमाटर की खेती करते हैं, तो वह 4 लाख रुपये तक की आमदनी आसानी से कर सकते हैं। क्योंकि, इसका भाव लाल टमाटर की तुलना में ज्यादा होता है। भारत के अंदर फिलहाल काले टमाटर की कीमत 100 से 150 रुपये प्रतिकिलो है।
अचानक बारिश से इस राज्य के किसानों को लगा झटका

अचानक बारिश से इस राज्य के किसानों को लगा झटका

किसान मोहित वर्मा का कहना है, कि उन्होंने इस बार काफी बड़े स्तर पर टमाटर की खेती की थी। खेत में टमाटर पके हुए थे। बस एक से दो दिन में उसकी तुड़ाई चालू होने वाली थी। उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जनपद में मौसम ने आकस्मिक तौर पर करवट बदली एवं देखते ही देखते आसमान में काले बादल से छा गए। इसके उपरांत तेज हवाओं सहित बारिश का दौर चालू हो गया। इससे लोगों को गर्मी से काफी हद तक राहत तो मिली। परंतु, किसान भाइयों के लिए यह बरसात मुसीबत बन गई। बारिश से खेत में लगी तरबूज, खरबूज और टमाटर की फसल को काफी ज्यादा हानि पहुंची है। विशेष कर बारिश होने से टमाटर सड़ने लग गए हैं। ऐसी स्थिति में किसान काफी चिंताग्रस्त हो गए हैं।

तरबूज, खरबूज और टमाटर की फसल में काफी नुकसान

मीडिया खबरों के अनुसार, किसानों ने बताया है, कि पिछले साल बाजार में तरबूज, खरबूज, टमाटर और खीरा का अच्छा-खासा भाव था। इसके चलते किसानों ने इस बार इन्हीं सब फसलों की खेती की थी, जिससे बेहतरीन आय हो पाए। परंतु, अचानक बारिश आने से सबकुछ बर्बाद हो गया। किसानों ने कहा है, कि बरसात की वजह से टमाटर, तरबूज और खरबूज की फसल में रोग लगना शुरू हो गए हैं। इससे फल सड़ना शुरू हो जाते हैं। साथ ही, तरबूज और खरबूज में दाग- धब्बे आ गए हैं। इससे बाजार में इसकी कीमतों में काफी गिरावट आई है। ऐसे में किसान भाई खर्चा तक भी नहीं निकाल पा रहे हैं।

व्यापारी टमाटर को खरीदने से बच रहे हैं

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि किसान मोहित वर्मा ने कहा है, कि उन्होंने इस बार बड़े स्तर पर टमाटर की खेती की थी। उनके खेत में टमाटर पके हुए थे। बस एक से दो दिन में उसकी तुड़ाई चालू होने वाली थी। परंतु, इससे पहले ही बारिश हो गई, जिसके चलते टमाटर में कीड़े लग गए एवं सड़न भी चालू हो गई। फिलहाल, बाजार में मेरे टमाटर को व्यापारी खरीदने से कतरा रहे हैं। मोहित वर्मा का कहना है, कि इस बार उसने 2 बीघे खेत में टमाटर की खेती की थी। इसके ऊपर 60 हजार रुपये की लागत आई थी। परंतु, फिलहाल ऐसा लग रहा है, कि लागत भी नहीं निकल सकेगी। यह भी पढ़ें : गर्मियों में ऐसे करें टमाटर की खेती, जल्द ही हो जाएंगे मालामाल

तरबूज और खरबूज की खेती करने वाले किसान ने क्या कहा है

साथ ही, किसान बहादुर ने कहा है, कि इस बार 70 हजार रुपये की लागत से उसने चार बीघे में तरबूज और खरबूज की खेती की थी। परंतु, बारिश के कारण तरबूज और खरबूज के फल सड़ना शुरू हो गए। साथ ही, उसमें दाग- धब्बे भी आ चुके हैं। अब ऐसी स्थिति में मंडी में हमारी फसल की समुचित कीमत नहीं प्राप्त हो पा रही है। यदि मंडी के अंदर यही भाव चलता रहा, तो इस बार तरबूज- खरबूज की खेती में घाटा होगा। बतादें, कि बारिश की वजह से महाराष्ट्र में किसान भाइयों को काफी हानि का सामना करना पड़ा है। सैकड़ों एकड़ में लगी प्याज की फसल को भी क्षति पहुंची है।